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User:2240313rishika/sandbox

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बुर्रा कथा[edit]

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प्राचीन जंगम लोक कलाकार

बुर्रा कथा, जंगम कथा परंपरा की एक मौखिक कहानी सुनाने की कला है। यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के गांवों में प्रचलित है। मंडली में एक मुख्य कलाकार और दो सह-कलाकार होते हैं। यह एक कथात्मक मनोरंजन है जिसमें प्रार्थना, नृत्य, गीत, एकल नाटक, कविताएँ व चुटकुले शामिल हैं। विषय के तौर पर हिंदू पौराणिक कहानी (जंगम कथा) एक पसंदीदा मुद्दा है ।तेलंगाना विद्रोह (१९३०-१९५०) के दौरान यह एक लोकप्रिय कलारूप बन गई।

उद्गम[edit]

बुर्रा कथा का नवीन रूप गांवों में अशिक्षित जनता के बीच राजनीतिक विचारों का प्रचार करने के उद्देश्य से गुंटूर जिले में विकसित किया गया था।

शब्द-व्युत्पत्ति[edit]

"बुर्रा" का तात्पर्य तम्बूरा होता है, जो एक संगीत वाद्य यंत्र है। "कथा" का अर्थ है कहानी होती है।

तेलुगु में “बुर्रा” का मतलब दिमाग होता है। इसका खोल मानव खोपड़ी को दर्शाता है। इसी से पकी हुई मिट्टी या सूखे कद्दू, या पीतल और तांबे से बनाया जाता है । बुर्रा काफ़ी तारिके से वीणा यंत्र के समान दिखता है।

इतिहास[edit]

बुर्राकथा की शुरुआत घुमंतू लोगों के भक्ति गीतों के रूप में हुई और आज यह एक लोकप्रिय कला है। यह आंध्र प्रदेश के रेडियो और टीवी पर नियमित रूप से आता है। जंगम लिंगायत भगवान शिव की पूजा करते थे और यह गाते थे। इन नाटकों में दो कलाकार भाग लेते है: कहानीकार और उसकी पत्नी। सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ, धर्मनिरपेक्ष पहलू को इस रूप में शामिल किया गया। आधुनिक रूप में किसी भी लिंग के तीन कलाकार होते है।

लोकप्रिय हिंदू कलाकार थे पेंड्याला वेंकटेश्वरराव, सुनकारा श्री कृष्ण माधव राव, पारुचुरी रामकोटय्या, सिरिविसेट्टी सुब्बाराव, कोसुरी पुन्नय्या, गोवर्धन, काकुमनु सुब्बाराव, दावुलुरू, चिंतालाल सूर्यनारायण, बुडागजंगला मोटे पपैया, बुडागजंगला मोटे कुल्लयप्पा, बुडागजंगला मोटे रामलिंगम आदि। महिलाओं के भी समूह है, जैसे, मोटुरी उदयम, चिंताला कोटेश्वरम्मा, महानकली लक्ष्मी, श्रीदेवी बहनें, आदि। लोकप्रिय हिंदू धर्म के बाहर के कलाकार: अब्राहम भगवतार, मनोहर कवि, खादर खान साहब, शेख नज़र आदि।

शेख नज़र ने उस समय विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर प्रदर्शन किया जिससे ये इतना लोकप्रिय बन गया।

आधुनिक रूप[edit]

मुख्य कथाकार (कथाकुडु) कहानी का कथन करते है। वह तंबूरा बजाते है और संगीत पर नृत्य करते हैं। वह अपने दाहिने अंगूठे पर एंडेलु नामक धातु की अंगूठी भी पहनते हैं, अपने दूसरे हाथ में एक और अंगूठी रहते हैं और उन्हें बार-बार तकराते है। सह-कलाकार गुम्मेता (जिसे दक्की या बुदिके भी कहा जाता है), जो एक दो सिर वाले मिट्टी का ड्रम होता है। वे उसे बजाते हैं। तीनों या केवल कथकडु पायल पहनते हैं (जिन्हें गज्जेलु भी कहा जाता है), जो नृत्य करते समय और भी अधिक संगीत उत्पन्न करते हैं।

दाहिनी ओर के कलाकार (हास्यका, जिसका अर्थ जोकरहोता है) जोकर के रूप में अभिनय करते है और व्यंग्य और चुटकुले सुनाते है। बाईं ओर के कलाकार (रजकिया, जिसका अर्थ राजनीतिज्ञ है) एक ऐसे व्यक्ति के रूप में कार्य करते है जो सांसारिक तरीकों को जानते है और राजनीति और सामाजिक मुद्दों के बारे में बात करते है। मुख्य कलाकार और सह-कलाकार लगातार एक-दूसरे को संबोधित करते है। सह-कलाकार संदेह के साथ कथाकुडु को बाधित करते हैं, और वे कभी-कभी "वाह!" जैसे छोटे शब्दों के साथ कहानी की मुख्य घटनाओं पर जोर देते हैं। जब भी मुख्य कलाकार कोई गीत गाते है, तो वह "विनरा वीरा कुमारा वीरा गधा विनरा" से शुरुआत करते है, उसके बाद सह-कलाकार "तंधना तने तंधना ना" गाते हैं। इसे 'तांदना कथा' भी कहा जाता है।

महत्व[edit]

बुर्रा कथा गांवों में एक मनोरंजन कार्यक्रम था। यह अब भी दशहरा या संक्रांति त्योहार के मौसम के दौरान रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में घटनाओं का वर्णन करने के लिए देखा जाता है और साथ ही राजाओं की कुछ बेहतरीन और नैतिक कहानियों जैसे कम्बोजाराजू कथा, चिन्नम्मा कथा, मुग्गुरमोराटिला कथा आदि का भी वर्णन किया जाता है।


वर्तमान[edit]

बुर्राकथा सुनाने वालों को बुडगजंगलु कहा जाता है। आधुनिक जीवन में इंटरनेट और फिल्में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसीलिए बुर्राकथाएं देखने को नहीं मिल रही हैं और इसे विकसित करने तथा कला को निखारने वाला भी कोई नहीं है। अतीत में ये बुर्राकथा बताने वाले गाँवों में महत्वपूर्ण थे; अब उनकी कला को कोई महत्व देने वाला नहीं।

आज के आधुनिक समय में भी ये काला निभाने वाली जनजाति में पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं। उनके पास अपनी जनजाति के विकास के लिए जाति प्रमाण पत्र नहीं है।

दारोजी एरम्मा कर्नाटक के बुर्रा कथा के कलाकार थे।

संदर्ब[edit]

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