User:Deepanker pandey

From Wikipedia, the free encyclopedia

भावनायें हमें कमज़ोर बनाती हैं? या मज़बूत? यह विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन हम अपने आप को इन दोनों के बीच ही कहीं पा सकते हैं। हम अपनी असल जिंदगी में अपने आपको भावनाओं के एक अनियंत्रित चक्रवात में पाते हैं, पल भर पहले ही हमें संसार से असीम आनंद की प्राप्ति होती है अगले ही पल यह संसार हमें बहुत ही बिखरा हुआ दिखता है।ऐसा क्यों है? शब्द कम पड़ जाते हैं,भावनायें व्यक्त नही हो पाती आखिर इसमें दोष किसका है शब्दों का या भावनाओं का? भावनायें आखिर होती क्या हैं , ये कैसे हमपे अपना शासन करती हैं और कैसे हमारे व्यवहार में आमूल चूल परिवर्तन लाती हैं? ये अभी भी रहस्य ही बना है।