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User:Abhishekmishra758284

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नमस्कार दोस्तों

मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है!

मैं एक लेखक हूँ मेरी उम्र 22 साल है!

मुझे लिखना पसन्द है, लिखना मेरी आदत में शुमार है इंसान लिखता क्यूँ है क्योंकि उसे लगता है जो वह बोल नहीं पाता वो वह लिख सकता है लिखने में कई बार कोई पाबन्दी नहीं होती और कई बार बेहद पाबंदिया होती है

मुझे लिखने पर पियूष मिश्रा की कुछ लाइने याद आ रही हैं -

सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज पर उतार कर

चीख भी लेता हूँ आवाज़ भी नहीं होती!!

कुछ रचनाएँ -

1 - तुम्हारी याद से पीछा छुड़ाना है बड़ा मुश्किल

तुम्हारी राह से जब भी गुज़रता है मेरा ये दिल

तुम्हारी उंगलियों के लम्स को महसूस करता है

हर इक लम्हे में ये पागल हजारों बार मरता है

कभी ये सोचता है तुम कभी तो लौट आओगे

हमारे गाँव आओगे हमें अपना बनाओगे

मगर फिर याद आती हैं तुम्हारी वो कही बातें

जिनको सोचकर पत्थर के दिल में आग लग जाये

वो भी सो नहीं पाए हजारों रात जग जाये

तुम्ही सोचो कि मेरी बात तो कुछ और ही थी न

कि तुम तो बेतहाशा इक ज़माने में मेरी थी न

तुम्हारी इक ज़रा सी आह पर मैं जान देता था

तुम्ही से प्यार करता था तुम्ही को जान कहता था

कि तुमने क्यूँ किया ऐसा मुझे मालूम नहीं जाना

मेरी दुनिया में अब तुम फिर कभी न लौट के आना

संभल जाऊंगा मैं इक रोज़ तुमको भूल जाऊंगा

तुम्हारी जिंदगी से फिर मैं इतना दूर जाऊंगा

कि खुद भी चाहकर वापस कभी न लौट पाउँगा

कि खुद भी चाहकर वापस कभी न लौट पाउँगा !!


2-तेरे गुस्से का पारा बढ़ रहा है

खुदा हाफ़िज़ बिछड़ना पड़ रहा है

मेरी आवाज़ भी तुम सुन न पाओ

बड़ी ही दूर जाना पड़ रहा है

बड़ा शापित मुकद्दर है हमारा

ख़ुदा ये कुफ्र ढाना पड़ रहा है

बड़ी ही बेरहम शमशीर सी थी

तेरी आदत बताना पड़ रहा है

बड़े ही गौर से सुनना सभी बस

हमें किस्सा सुनाना पड़ रहा है

अरे अभिषेक तुम ऐसा न सोचो

खुद ही खुद को मानना पड़ रहा है!!


3- वो लड़का अनजान सा था पहचान बढ़ाता था

और मेरे साथ ही पैदल वो स्कूल से आता था

मेरी नज़रें जब पड़ती थी वो सहम सा जाता था

पर चोरी-चोरी मुझको वो बस देखे जाता था

मैं खुद के दिल को जो रोकूं वो रुक नहीं पाता था

मैं भी जो उसको ना देखूं तो चैन ना आता था

हम दोनो कि चोरी-चोरी जब नज़रें टकरा जाती थीं

जाने क्या दिल में प्यारा सा इक अहसास जगाती थीं

वो दिन भी आया जब उसने अपना अहसास बताया था

मैं ख़ुश थी लेकिन उस दिन इक सैलाब सा आया था

हम दोनो कि चाहत बिखरी किस्मत बिखरी थी रस्ते में

हम दोनों ने खूब समेटा दिल पर हाँथ न आया था

उसदिन के बाद कभी दिल मिल ही ना पाए मंज़िल में

ना मैंने उसको देखा है ना उसने मुझको पाया था

इन सबसे परे मेरी धड़कन में वो लड़का ही बस पाया था

उसके अलावा मेरे दिल में न कोई आएगा न आया था!!

आप सबका यहाँ पर आने के लिए धन्यवाद!

-आपका

- अभिषेक मिश्रा [1]









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