User:Hazel khan
जीवन परिचय
▼ Wednesday, October 4, 2017 प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी (सन् 1919-2005 ई.)
जीवन-परिचय- प्रो.जी.सुन्दर रेड्डी का जन्म 10 अप्रैल 1919 ई. को आन्ध्र प्रदेश के बेल्लूर जनपद के बत्तुलपल्लि नामक ग्राम मेंं हुआ था। वे श्रेष्ठ विचारक, समालोचक एवं निबन्धकार थे। इनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अत्यन्त प्रभावशाली रहा है। इनकी हिन्दी सािहत्य की सेवा, साधना एवं निष्इा सराहनीय रही है। हिन्दी के विकास में इनका योगदान प्रशंसनीय है। दक्षिण भारतीय होते हुए भी इनकी हिन्दी भाषा-शैली उच्च कोटि की है। इन्होंने हिन्दी के साथ-साथ तमिल औरA मलयालम आदि भाषाओं में भी कार्य किया है। वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विीााग के अध्यख रहे। इनके अनेक निबन्ध हिन्दी, अँग्रेजी एवं तेलुगू पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इन्होंने दशिण भारतीयों के लिए हिन्दी ओर उत्तर भारतीयों के लिए दक्षिणी भाषाओं के अध्ययन की प्रेरणा दी है। इन्होंने हिन्दी भाषियों के लिए तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम सहित्य की रचना की है। वे आजीवन भाषायी एकता के लिए प्रयासरत रहे। इस राष्ट्रवादी हिन्दी प्रचारक, पख्यात साहित्यकार एवं तुलनात्मक साहित्य के मूर्धन्य समीक्षक ने 30 मार्च 2005 को इनका देहान्त हो गया।
कृतियॉं
प्रो.जी.सुन्दर रेड्डी के प्रकाशित ग्रन्थ है।
साहित्य ओर समाज
मेरे विचार
हिन्दी ओर तेतुगू: एक तुलनात्मक अध्ययन
दक्षिण की भाषाएँ और उनका साहित्य वेचारिकी, शोध और बोध तेलुगू दारुल(तेलुगू) और लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इण्डिया (सम्पादित अँग्रेजी ग्रन्थ)
भाषा-शैली उपयुक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी, तेतुगू तथा अँग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में प्रो.रेड्डी के अनेक निबन्ध प्रकाशित हो चूुके हैं। इनके प्रत्येक निबन्ध में इनका मानवतावादी दृष्टिकोण स्पष्अ रूप से ढलकता है। 'दक्षिण की भाषाऍं और उनका साहित्य' में इन्होंने दक्षिणी भारत की चारों भाषाओं (तमिल,तेलुगू,कन्नड़ और मलयालम) तथा इनके साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करते हुए इनकी आधुनि गतिविधियों का सूक्ष्म विवेचन कियाा है। सभी ग्रन्थों में उनकी भाषा-शैली, भाव ओर विषय के अनुकूल बन पड़ी हैं। अहिन्दी प्रदेश के निवासी होते हुए भी इन्होंने हिन्दी भाषा पर अच्छा अधिकार प्राप्त किया है। इन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से भााषा और आधुनिकता पर विचार किया है। भाषा परिवर्तनशीन होती है। इसका यह अभिप्राय है कि भाषा में रनये भाव, नये मुहावरों तथानीय लोकोक्त्यिों का प्रयोग होता रहता है। इन सबका प्रयोग ही भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करते हुए भाषा में आध्ुनिकता लाता है- व्यावहारिकता की दृष्टि से प्रो. रेड्डी का यह सुझाव विचारणीय है। इन्होंने अपनी रचनाओं में यत्र-तत्र अंग्रेजी भाषा के शब्दो का भी प्रयोग किया है। जेैसे- भाषा मयूजियम की वस्तु नहीं है। इनकी निबन्ध-शैली विवेचनात्मक है सााि ही शैली में विचारों की गम्भीरता के सााथ विद्वता के भी दर्शन होते हैं।
प्रो. रेड्डी की शैली के रूप है विचारात्मक शैली गवेषणात्मक शैली प्रश्नात्मक शैली समीक्षात्मक शैली
प्रो. रेड्डी हिन्दी साहितय के उच्च कोटि के विचारक, समालोचक एवं निबन्धकार है। अहिन्दी भाषाी क्षेत्रों में देश की कामकाजी एवं सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार में इनका अति प्रशसंनीय योगदान है।
at October 04, 2017
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