User:Sanjayrikth
अभिनव मिथिला की स्थापना मिथिलावाद का प्रचार-प्रसार, जन-जन में मिथिला के प्रति सोयी भावना को पुन: करने की दिशा में ६ मई २०१८ को हुआ। संपूर्ण विश्व मिथिला को बौद्धिक रूप से संपन्न मानता रहा है। भारत के छ: दर्शन जिसे विश्व धरोहर के रूप में देखता है, उनमें से चार की स्थापना मिथिला ने हुई। धर्मशास्त्र जिसे विश्व का पहला संविधान माना जा सकता है वह मिथिला में एक मैथिल द्वारा लिखा गया। न्यायशास्त्र जिसे वैश्विक न्याय व्यवस्था का सूत्र ग्रंथ माना जा सकता है उसे एक मैथिल ने लिखा। पूर्व मीमांसा जिसपर आधारित उत्तर मीमांसा की रचना हुई उसे एक मैथिल ने लिखा। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय सनातन दर्शन के चार स्तंभ सीधे तौर पर और पाँचवा अप्रत्यक्ष रूप से मैथिलों द्वारा लिखा गया।
एक प्रचलित घटना है जब राजा जनक ने एक सभा आयोजित की और कहा कि सर्वश्रेष्ठ विद्वान को स्वर्ण जडित सींग वाली सहस्त्र गायें भेंट की जाएगी, उस सभा में किसी विद्वान की हिम्मत न हुई कि शास्त्रार्थ प्रारंभ करे। तब महर्षि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों को आदेश दिया गायों को अपने आश्रम ले चलें। उसी सभा में उपस्थित माता गार्गी ने इसका विरोध किया और शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। शास्त्रार्थ दो विद्वानों के बीच शास्त्रों और तर्कों पर आधारित शांतिपूर्ण माहौल में बहस करने की एक व्यवस्था है। इसी बहस के अंत में महर्षि याज्ञवल्क्य ने उद्घोष किया:
"आत्मा वा अरे द्रष्टव्य:"
(जब सभी प्रकार के प्रकाश नष्ट हो जाएँ तब अंतर्मन का प्रकाश हमें मार्ग दिखाएगा।")
यह मिथिलावाद का प्रथम सूत्र है। अंतर्मन का प्रकाश दूषित हो ही नहीं सकता। यह पूर्णत: विकसित साइकिक बिइंग है जो आत्मा से जुडकर परमात्मा से एकत्व का मार्ग प्रशस्त करता है। यही वह प्रकाश है जिसमें "वसुधैव कुटुंबकम्" की भावना पलती है।
"यह मिथिलावाद का दूसरा सूत्र हुआ।"
"वसुधैव कुटुंबकम्" ही वह सूत्र है जो आज के तमाम प्रकार के मानवाधिकार आदि की जडों में बैठा है।