User:Shaheeddadasahebamiruddin/sandbox
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शहीद दादा साहेब अमीरुद्दीन के शहादत की दास्तान
और हिन्दुस्तान के आज़ादी में किया गया उनके और खानदान का ऐतिहासिक योगदान
सन 1857 की शहादत
काजी जुल्फिकार अली खान, वीर कुंवर सिंह, मौलाना नन्हा शाह के बेटे जफरुद्दीन कई साथियों गन के सहयोग से भारतीय विद्रोह के दौरान एक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन, (1857 से 1858) के वीर नायको में से एक थे 1857 के सर्वश्रेष्ठ योद्धा ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से डटकर मुकाबला किया था 1858 से 1919 तक मगध भारत के क्रांतिकारी दादा साहेब के नाम से प्रचलित है कोई भी क्रांतिकारी आदर और सम्मान करते हैं दादा साहेब का नारा - आंधी आया भागो अंग्रेज लटक छोड़ो खटके खाओ कोई मिटाया तो मीट ना सका हकीकत हकीकत को पहचानती है
सभी क्रांतिकारियों ने दादा साहेब के आवाज को लेकर पूरे मगध बिहार में लोगों को मजबूत बनाया था
1919 ईस्वी में आए रॉलेक्ट एक्ट का पूरे हिंदुस्तान में विरोध हुआ था
इस कानून के विरोध में संपूर्ण भारत में हड़ताल जुलूस और प्रदर्शन होने लगे थे
तभी महात्मा गांधी जी के व्यापक सत्याग्रह का आह्वान किया इसी तरह के विरोध में जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को निहत्थे भीड़ पर गोलीबारी हुई
इसके बाद पूरे हिंदुस्तान में गुस्सा अपने चरम सीमा पर पहुंच गया
उनमें से एक नाम मौलना नन्हा शाह के पोते और (मुजाबीर) मौलवी साहब जाफिरुद्दीन का बेटे दादा साहब अमीरुद्दीन थे
जिसने भारत में आजादी दिलाने का बिड़ा अपने कंधे पर उठाया था। जिनको 30 दिसंबर 1919 में अंग्रेजों ने अपनी गोली का शिकार बना दिया था। अखिल भारतीय मुस्लिम लिग के सामाजिक कार्यकर्ता दादा साहब अमीरुद्दीन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाई थी। अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 में ब्रिटिश भारत के दौरान ढाका के नवाब सलीम खान के नियंत्रण में एक सम्मेलन में हुआ था। इस लीग का गठन 1907 में कराची पाकिस्तान में किया गया था ऑल इंडिया मुस्लिम लीग में आगा खान ख्वाजा सलीमुल्लाह और मोहम्मद अली जिन्ना समेत कई नेता शामिल थे
वर्ष 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग सिर्फ मुस्लिम लीग बन गई थी जबकि दादा साहब अमीरुद्दीन के पिता मौलवी साहब जफरुद्दीन, हज़रत हैदर शाह सैलानी रहमतुल्ला अलैह दरगाह शरीफ जहानाबाद बिहार के मुजाबिर थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्या थे
ये 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसंबर 1885 को मुंबई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी
इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए यू हयूम थे जिन्होंने कोलकाता के वयोमेश चंद्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था
दादा साहब अमीरुद्दीन की, बीबी हुमेरा खातुन के पाँच बच्चे हैं तीन बेटा दो बेटी, बड़ा बेटा का नाम समसुद्दीन, कमरुद्दीन, यासीन बड़ी बेटी, राकिबा खातुन, छोटी बेटी हसीबा खातून इस घटना के बाद दादा साहब अमीरुद्दीन के बेटे समसुद्दीन अंग्रेजो के खिलाफ कसकर आंदोलन छेड़ दिया स्वतंत्रता आंदोलन का तीसरा चरण 1919 से लेकर 1929 भारतीय राजनीतिक में गांधी जी के पद पर स्वतंत्रता आंदोलन किया फिर एक नया दौर हुआ
अनेक प्रकार कारणों के कारण राष्ट्रीय आंदोलन एक जन आंदोलन का रूप लिया गया
इस समय समसुद्दीन के बेटे गुलाम रसूल आगे-आगे उनके साथ उनके दोस्त साधु ताल, फिदा हुसैन फेकू मिया, रावत, सनातन, मधु प्रभा, यह सब 15 अठारह साल के नौजवान का जज्बाती होना भावुक हुए इसलिए पूरी तरह आंदोलन में कूद पड़े हिंदुस्तान की जंगे आजादी में हिस्सा लेने के लिए सन 1920 अप्रैल में गया शहर में आयोजित हुई खिलाफ तहरीन के एक जलसे में हिस्सा लिया इस साल 5 दिसंबर 1920 को सहयोग तहरीन को कामयाब बनाने के लिए मौलाना शौकत अली, महात्मा गांधी मौलाना आजाद, स्वामी सत्यदेव, वगैरा के साथ गए और आसपास के इलाके का दौरा किया था ( गुलाम रसूल का जन्म से मृत्यु तक 1894 से 1977 तक चला है)
12 अगस्त 1921 को ईद उल जुहा के मौके पर महात्मा गांधी, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, जमुना लाल बजाज आदि के साथ पूरे मगध के इलाके का दौरा किया, एक स्वामी स्वयंसेवक और राजा कार की हैसियत से गुलाम रसूल, फिदा हुसैन, एवं सभी साथी के साथ पूरे मगध का दौरा किया और नौजवानों को तहरीक ऐ आजादी में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया
14 जनवरी 1927 ईस्वी को महात्मा गांधी खादी वस्त्र के प्रचार और जन जागरण के सिलसिले में धनबाद होते हुए मगध के इलाके में आएं तब मोहम्मद गुलाम रसूल उनके साथी ने उनका भरपूर साथ दिया और उन्होंने महात्मा गांधी के सामने की खादी वस्त्र धारण किया और उनका जीवन पालन भी किया है
1928 ईस्वी में गुलाम रसूल उनके साथी फेकू मिया और फिदा हुसैन ने सिमोन कमिशन का विरोध करते हुए अपने साथियों के साथ एक विशाल जुलूस निकाला बिहार की राजधानी पटना में सैय्यद हसन इमाम की सदारत में हो रहे सिमोन कमीशन विरोधी आयोजन में खुल कर हिस्सा लिया और अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। 1930 ईस्वी में गांधी की कयादत में नमक सत्याग्रह छिड़ा और कैंडल मार्च हुआ गुलाम रसूल के पिता समसुद्दीन और कई साथियों ने भी इसमें हिस्सा लिया और विदेशी सामान की होली जलाई साथ ही गांजा, ताड़ी और शराब की दुकान को शांति पूर्वक धारण से बंद करवा दिया
जिसके नतीजे में गुलाम रसूल अपने कई साथियों के सहित गिरफ्तार कर लिए गये और 6 महीने जेल में अंग्रेजों द्वारा कड़ी जुल्म बर्दाश्त करने के बाद आजाद हुए, उनको जेल में अंग्रेजी सरकार द्वारा वर्क के सिक्के पर लेटाया जाता था
विक्टोरिया के सिक्के को दहकती आग में डालकर गर्म करके उनको बदन पर दागा जाता था लेकिन मजबूत इरादे अंग्रेजों के जुल्म सितम के आगे उनके हौसले मजबूत चट्टान बनकर उभरते रहे
अंग्रेजों के जुल्म से भारत को आजाद कराने के लिए समसुद्दीन के बेटे गुलाम रसूल के कई साथी ने ना सिर्फ आंदोलन किया बल्कि क्रांतिकारी पत्रिका को लोगों तक पहुंचा कर जागरूक भी किया क्रांतिकारी पत्रिका का अब जिसका नाम चिंगारी रखा गया है
अंग्रेजों के जुल्म की दस्तान लिखने के बाद आवाम से अंग्रेजों का मुखालफत करने की अपील करते थे
गुलाम रसूल किसान आंदोलन में भी आगे आगे रहे, सबसे पहले शाह मोहम्मद जुबेर की कयादत में किसान आंदोलन में हिस्सा लिया फिर उनके भाई शाह मोहम्मद उमर के साथ मिलकर इस तरीके को मजबूत किया। यदुनंदन शर्मा, रामानंद मिश्रा मोहन लाल, गौतम, जैसे किसान नेताओं के साथ मिलकर हित में बहुत से काम अंजाम दिए थे स्वामी सहजानंद सरस्वती के साथ मिलकर किसान की समस्या को 1937 ईस्वी में गठित कांग्रेस मंत्रिमंडल के सामने रखा गया
उन्हें 1938 ईस्वी में कांग्रेस के सरदार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मागध दौरे को कामयाब बनाने में गुलाम रसूल और कई साथी लोग आगे आगे रहे। 1940 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की सदारत में हुई कांग्रेस के 53 वे अधिवेशन में गुलाम रसूल के कई साथी ने न सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया था जिसे उसे अभीवेश्याओं में बाकायदा मौलाना अब्दुल कलाम आजाद द्वारा उनके सुझाव को दरश भी किया गया था 1940 में ही गुलाम रसूल ने व्यक्तिगत सत्याग्रह में हिस्सा लेकर जहानाबाद अनुमंडल (अब जिला के पहले सत्याग्रही बने अगस्त की क्रांतिकारी को कामयाब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी 8 अगस्त 1942 ईसवी को गांधीजी की कयादत में जैसे कि यूसुफ जफर मेहर अली ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया पूरे भारत में इंकलाबी लहर दौड़ पड़ी। गुलाम रसूल और उनके साथी फिदा हुसैन ने भी अपने साथियों के साथ मिलकर पूरे मगध इलाके में इस आंदोलन में जान डाल दी थी। अंग्रेजो के सरकारी दफ्तर पर कब्जा कर लिया और हथियार लूट कर अंग्रेजो के पुलिस स्टेशन को आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान गुलाम रसूल, फिदा हुसैन के कई क्रांतिकारी साथी पुलिस की गोली का शिकार भी हुए अंग्रेजों द्वारा समसुद्दीन काली सूची वर्ग में दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिए गए। 19 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजो के खिलाफ अपना बहुत बड़ा योगदान दिया। अक्टूबर 1946 में अंग्रेजो द्वारा बिहार में दंगा भड़काया गया तभी समसुद्दीन एवं उनके बेटे गुलाम रसूल उनके साथी और कई लोग मिलकर इसे रोकने की बहुत कोशिश की थी। फिर समसुद्दिन और उनके बेटे गुलाम रसूल ने अपने खानदानी खज़ाने से दंगाई पीढ़ित लोगो की मदद की और उनका पालन पोषण किया 1947 में दंगा पीड़ित का हालचाल लेने गांधी जी फिर मगध इलाके में आए तब समसुद्दीन और उनके बेटे गुलाम रसूल उनके साथ पूरे इलाके का दौरा किया, स्थानीय नेता की हैसियत से जो भी हो सकता था वो उनकी मदद को पहुंचाई। गुलाम रसूल, और उनके बेटे इकरामुद्दीन, इमामुद्दीन आदि ने लोगों की मदद की इकरामुद्दीन के दो बीबी, बड़ी बीवी का नाम जुबेदा खातून से 2 बच्चे, दो बेटी बड़ी बेटी शहनाज खातून, छोटी बेटी इशरत खातून दूसरी बेगम महमुदन खातुन से एक बेटा मोहम्मद अहमद हुसैन हैं। (इकरामुद्दीन का जन्म से लेकर मृत्यु तक 1919 से लेकर 2007 तक इमामुद्दीन दो बीबी बड़ी बेगम का नाम संजीदा खातून से एक बेटा अनवर हुसैन, एक बेटी रजिया बेगम, अनवर हुसैन की बड़ी बीवी अफसाना बेगम 3 बेटे 2 बेटी, बड़ा बेटा असगर हुसैन, अशरफ हुसैन, सबसे छोटा बेटा अज़हर हुसैन, बड़ी बेटी रूमाना प्रवीन, छोटी बेटी रेशमा प्रवीन है। छोटी बीवी अख्तरी खातून जिनके 2 बेटे और एक बेटी है, बड़ा बेटा कामरान जाफरी छोटा बेटा सैफ अली, और एक बेटी तहसीन खातून है, इमामुद्दीन की दूसरी बेगम हुसना बानो से चार बेटा 3 बेटी एकबाल अहमद, एजाज हुसैन, सरफराज अहमद, शहजाद अहमद, बड़ी बहन शहजादी खातून, अख्तरी खातून, रोशन जहाँ, हुसना बानो वलद हबीब हुसैन वलद जुम्मन शेख हुस्त्रा बानो मां सोगरा खातून दादी इमामन खातून, हुसना बानो के नाना युसूफ अली, छोटा नाना मासूम अली मासूम अली का बेटा आशिक़ हुसैन, दौलत हुसैन बंगाल कोलकाता में, फूल बागान मेहंदी बागान में रहते थे वही अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन करने में उनकी जान देनी पड़ी वह सब शहीद हो गये उनके नाना मामा सारे परिवार कोलकाता और मोतिहारी पूर्वी चंपारण बिहार राज्य का एक हिस्सा है वह सब आंदोलन में शहीद हो गये हुसना बानो के चार मामा, इदरीश हुसैन, यूनुस हुसैन, याकूब हुसैन, तसीम हुसैन जंगे आजादी में सब शहीद हो गये हैं ( इमामुद्दीन जन्म से लेकर मृत्यु तक 1921 से 2016 ) साथ ही बाहर से आए तमाम नेताओं को हालात से रूबरू करवाया उस समय मगध पर पूरे भारत की नजर थी और पूरे भारत के लोग यहां राहत कार्य के लिए आए थे जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सैफुद्दीन किचलू, सरदार पटेल खान बहादुर, गफ्फार खान, जनरल शाहनवाज, सहित सैकड़ों चोटी के नेता ने इस इलाके में अपना डेरा डाल रखा था फिर 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। और बिहार के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रपति बनाए गया सरदार वल्लभ भाई पटेल को गृह मंत्री बनाया गया। स्वतंत्रा सेनानी शमसुद्दीन के तीन बच्चे हैं दो बेटा एक बेटी अहमदु रसूल, गुलाम रसूल और महमुना खातुन दरगाहन !! स्वतंत्रा सेनानी गुलाम रसूल के दो बीबी बड़ी बेगम का नाम हाफिजन खातून चार बेटा, एक बेटी है बड़ा बेटा का नाम - इकरामुद्दीन इमामुद्दीन, कयूम उद्दीन शहाबु सुल्ताना आरा, गुलाम रसूल छोटी बेगम का नाम हाफिजा निशा, दो बच्चे हैं सदन, हुसना आरा, बेटी // एक बेटा, एक 1947 में जब देश आजाद हुआ उस समय गुलाम रसूल का बड़ा बेटा इकरामुद्दीन का उम्र 24 साल और गुलाम रसूल का दूसरा बेटा इमामुद्दीन का उम्र 26 साल का नौजवान और तीसरा बेटा कयूम उद्दीन का उम्र 11 साल और छोटा बेटा का उम्र 5 साल का था इन सभी ने देश के आजादी के लिए बड़ी भूमिका निभाई है जहानाबाद, महबूब साहेब जहानाबाद के एक बड़ा जमींदार माने जाते हैं फिर मगध बिहार के गया के हिस्से के जमीदार टिकारी महाराज माने जाते हैं। थाना न० : 383 के कटकरी जमींदार है वाजुल हक साहब थाना न०:- 346 के कटकरी जमींदार उमसतुल रसूल खातुन थाना न०: 393 के कटकरी जमींदार मजहर खान साहेब कटकरी जमींदार नरारुउद्दीन साहेब सन, 1947 देश की आजादी के बाद 1954 में जमीदारी खत्म हो गया था
खानदान का पीढ़ी
(1वा पीढ़ी) मौलाना नन्हा शाह (2वा पीढ़ी) मौलाना जफरुद्दीन (3वा पीढ़ी) शहीद दादा साहेब अमीरुद्दीन (4वा पीढ़ी) मोहम्मद समसुद्दीन (5वा पीढ़ी) मोहम्मद गुलाम रसूल (6वा पीढ़ी) मोहम्मद इमामुद्दीन (7वा पीढ़ी) मोहम्मद अनवर हुसैन, (मुजाबिर) मोहम्मद एकबाल अहमद, मोहम्मद, एजाज हुसैन, मोहम्मद सरफराज अहमद,मोहम्मद शहजाद अहमद, (8वा पीढ़ी) मोहम्मद असगर, मोहम्मद अशरफ़, अज़हर हुसैन, कामरान जाफरी, सैफ़ अली मोहम्मद एकबाल अहमद के 3 बेटा है बड़ा बेटा अशफ़ाक हैदर, इषफाक हैदर, असद अहमद है एजाज़ हुसैन के एक बेटा है जिसका नाम शाहबाज हुसैन है मोहम्मद सरफराज अहमद के दो बेटा है जिसका नाम मोहम्मद काबीर अहमद, मोहम्मद उस्मान अली है शहजाद अहमद का एक बेटा मोहम्मद अयान अहमद है (9वा पीढ़ी) मोहम्मद असगर के बेटे मोहम्मद अयान मोहम्मद अशरफ़ के बेटे मोहम्मद मेहराज है अज़हर हुसैन के बेटे ताबीश हुसैन हैं जो की 9वा पीढ़ी के सबसे बड़े बेटा है