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User talk:दलित आदिवासी युवा संघ

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Jago[edit]

बुरी खबर...अब आसानी से प्रताड़ित किए जा सकेंगे दलित.

आखिरकार दलितों के सम्मान का एकमात्र सहारा, दलितों के प्रतिरोध का एकमात्र हथियार उनसे छिन गया है. सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST Act में सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है और अब यह हथियार बेअसर हो गया है. इस एक्ट में अब केस दर्ज होने पर पहले वरिष्ट पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी जाँच करेगा और उसके बाद ही कोई कारवाही होगी. अभियुक्त अगर सरकारी नौकरी में है तो उसे नौकरी पर रखने वाले अधिकारी की मंजूरी के बाद ही गिरफ़्तारी हो सकेगी और यदि अभियुक्त सरकारी नौकरी में नहीं है तो वरिष्ट पुलिस अधीक्षक की मंजूरी के बाद ही गिरफ्तारी संभव हो सकेगी. हर मामले में गिरफ्तार करने के कारण भी लिखित में दर्ज करने होंगे.

क्या होगा इसका असर ?

अब स्वर्ण जब चाहें और जितना चाहें दलितों को अपमानित कर पायेंगे, बिना किसी डर.कैसे होगा यह ? अगर कोई स्वर्ण किसी दलित को प्रताड़ित करता है तो अब उसे गिरफ्तारी का डर नहीं होगा. पहले केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान था और ऐसे में पुलिस पर अभियुक्त को गिरफ्तार करने का दबाव रहता था. पुलिस केस दर्ज करने में आनाकानी करके अभियुक्त को बचाने और पीड़ित को दबाने का काम करती थी, लेकिन केस दर्ज हो जाए तो फिर गिरफ्तार करना ही होता था. लेकिन अब पुलिस को पीड़ित को दबाने का एक और मौका मिल गया है, एक तो वे केस दर्ज ही नहीं होने देंगे और हो भी गया तो गिरफ्तारी नहीं होगी. इससे अभियुक्त का मनोबल और बढेगा दूसरी तरफ पीड़ित का मनोबल बिलकुल टूट जाएगा वह लड़ने की हिम्मत खो देगा. धीरे-धीरे लोग परेशान होकर केस दर्ज करवाना ही बंद कर देंगे. ध्यान रखिए , गिरफ्तारी की मंजूरी देने में सक्षम सरकारी अधिकारी सामान्यत स्वर्ण ही होगा, जांच करने वाला वरिष्ट पुलिस अधीक्षक भी सामान्यत स्वर्ण ही होगा. ऐसे में ये लोग कितने निष्पक्ष होकर अपने समाज के लोगों के खिलाफ निर्णय दे पायेंगे यह आप सब अच्छी तरह से जानते ही हो. ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले साल ही भाजपा सरकार ने SC-ST Act को और प्रभावी बनाया था, और ज्यादा मजबूत किया था. दलितों का दिल जीतने के लिए कानून को मजबूत बनाया गया और दूसरी तरफ अब उसके सारे दांत तोड़ दिए गए हैं. मजेदार यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं की उसके इस आदेश की कड़ाई से पालना हो और अगर इस निर्देश की पालना नहीं की जाती है तो सम्बंधित अधिकारियों पर कारवाही की जा सकती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट अपने किसी निर्णय की इतनी कड़ाई से पालना के निर्देश कम ही देता है. दलित आदिवासी युवा संघ (talk) 16:18, 21 March 2018 (UTC)[reply]